दुख दर्द रंज-ओ-ग़म का न कोई मलाल कर होता है सब ख़ुदा की तरफ़ से ख़याल कर दुश्वार है ये चीज़ भी रखना सँभाल कर पहलू से दे रहा हूँ मैं दिल को निकाल कर माज़ी तो ख़ैर लौट के आने से अब रहा बेहतर है मेरे दोस्त यही फ़िक्र-ए-हाल कर मजरूह इस से होता है अपना वक़ार भी मुश्किल में दोस्तों से न कोई सवाल कर डस लेगा एक रोज़ उसे ही ख़बर नहीं जो साँप आस्तीन में रखता है पाल कर जिस की शराफ़तों की क़सम खा रहे थे लोग वो बात भी करे है तो ख़ंजर निकाल कर कहना है जो भी 'शम्सी' कहो उस के रू-ब-रू क्या फ़ाएदा है बाद में कीचड़ उछाल कर