ऐ जान शब-ए-हिज्राँ तिरी सख़्त बड़ी है हर पल मगर इस निस की ब्रम्हा की घड़ी है हर बाल में है मेरा दिल-ए-साफ़ गिरफ़्तार क्या ख़ूब तिरी ज़ुल्फ़ में मोतियाँ की लड़ी है नीलम की झलक देती है याक़ूत में गोया सो तेरे लब-ए-लाल पे मिस्सी की धड़ी है थे ज़िक्र दराज़ी के तिरी हिज्र की शब के क्या पहुँची शिताब आ के तिरी उम्र बड़ी है सूरज का जलाने कूँ जिगर जियूँ दिल-ए-'फ़ाएज़' ऐ नार तू क्यूँ धूप में सर खोल खड़ी है