ऐ मह-ए-हिज्र क्या कहें किसी थकन सफ़र में थी

By najeeb-ahmadNovember 10, 2020
ऐ मह-ए-हिज्र क्या कहें कैसी थकन सफ़र में थी
रूप जो रहगुज़र में थे धूप जो रहगुज़र में थी
लफ़्ज़ की शक्ल पर न जा लफ़्ज़ के रंग भी समझ
एक ख़बर पस-ए-ख़बर आज की हर ख़बर में थी


रात फ़सील-ए-शहर में एक शिगाफ़ क्या मिला
ख़ून की इक लकीर सी सुब्ह नज़र नज़र में थी
मेरी निगाह में भी ख़्वाब तेरी निगाह में ख़्वाब
एक ही धुन बसी हुई अस्र-ए-रवाँ के सर में थी


शहर पे रतजगों से भी बाब-ए-उफ़ुक़ न खुल सका
वुसअत-ए-बाम-ओ-दर 'नजीब' वुसअत-ए-बाम-ओ-दर में थी
56992 viewsghazalHindi