ऐ रश्क-ए-गुल-ए-तर तू कभी देख इधर भी

By rahbar-jadeedJuly 7, 2021
ऐ रश्क-ए-गुल-ए-तर तू कभी देख इधर भी
काफ़ी है मिरे दिल पे तिरी एक नज़र भी
ऐ जान-ए-जहाँ तेरा पता ख़ाक लगाएँ
जब हम को मोहब्बत में नहीं अपनी ख़बर भी


इक उम्र से हम कुश्ता-ए-आलाम-ओ-सितम हैं
हो जाए कभी हम पे इनायत की नज़र भी
वो मिल न सके हम को कहीं दश्त-ओ-जबल में
ढूँडा है उन्हें हम ने सर-ए-राहगुज़र भी


हम हुस्न के बंदे हैं परस्तार-ए-मोहब्बत
पाएँगे हमें आप चले जाएँ जिधर भी
गो तिश्ना-दहन मुहर-ब-लब बैठे हैं साक़ी
हम भी तिरे बंदे हैं कोई जाम इधर भी


वो अपनी जफ़ाओं पे पशेमान है 'रहबर'
मासूम सी आँखों में है शबनम भी शरर भी
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