ऐ शौक़-ए-दिल भी एक मुअम्मा अजीब है

By ahmad-fakhirOctober 23, 2020
ऐ शौक़-ए-दिल भी एक मुअम्मा अजीब है
सहरा को आँधियों की तमन्ना अजीब है
मौजों के इज़्तिराब ने धड़का दिया था दिल
उतरे जो हम उतर गया दरिया अजीब है


दुश्वार हो गई है अब अपनी शनाख़्त भी
आईना कह रहा है कि चेहरा अजीब है
शाख़ें जो मेरे सहन में हैं उन में फल न आए
हम साए का दरख़्त भी कितना अजीब है


उठती है इक फ़सील तो गिरती है इक फ़सील
'फ़ाख़िर' ये चाहतों का घरौंदा अजीब है
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