ऐ वक़्त तेरी आँख का काजल रहे हैं हम

By mohammad-khan-sajidApril 23, 2021
ऐ वक़्त तेरी आँख का काजल रहे हैं हम
हर एक मसअले का तिरे हल रहे हैं हम
मंज़िल की जुस्तुजू का ये आलम तो देखिए
सहरा है तेज़ धूप है और चल रहे हैं हम


हाथों में आज वक़्त ने कश्कोल दे दिया
नाज़ाँ हैं हम ये सोच के क्या कल रहे हैं हम
अश्कों ने और आतिश-ए-फ़ुर्क़त को दी हवा
बरसात हो रही है मगर जल रहे हैं हम


अंजान बन के आज जो गुज़रा क़रीब से
बरसों उसी के इश्क़ में पागल रहे हैं हम
हर दौर को लहू का दिया हम ने ही ख़िराज
इस दौर में भी ज़ीनत-ए-मक़्तल रहे हैं हम


हक़-गो हैं हक़-शनास हैं और हक़-परस्त भी
'साजिद' इसी वजह से बहुत खल रहे हैं हम
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