एक चेहरा हदफ़ बनाने पर धर लिया क्यों हमें निशाने पर सोचता हूँ ये क्या तसलसुल है टूट जाता है साँस आने पर सारे मोती बिखरते जाते हैं एक धागे के टूट जाने पर हिज्र पीछे ही पड़ गया मेरे चंद लम्हों को गुदगुदाने पर उँगलियाँ 'नज्म' ख़ुद पे उठने दे तू न उँगली उठा ज़माने पर