इक दूसरे का हाथ भी पकड़े हुए हैं लोग फिर भी ये लग रहा है अकेले खड़े हैं लोग दुनिया कहाँ कहाँ है किसी को ख़बर नहीं ख़ुश-फ़हमियों की क़ब्र में सोए हुए हैं लोग उस सम्त जा रहे हैं जिधर ज़िंदगी नहीं आँखें खुली हुई हैं मगर सो रहे हैं लोग सूरज ज़कात बाँट के वापस चला गया कश्कोल हाथ में लिए अब भी खड़े हैं लोग 'नादिर' तुम अपनी प्यास कहाँ ले के आ गए क़तरे उधार माँग के दरिया बने हैं लोग