एक ही मंज़र तो बेहतर था हमें
By aarif-nazeerJuly 12, 2024
एक ही मंज़र तो बेहतर था हमें
यूँ पस-ए-मंज़र का कब डर था हमें
फ़ाइलों से कह दिया था हाल-ए-दिल
यार बेहतर घर से दफ़्तर था हमें
जाम में होता ख़ुलूस-ए-दिल अगर
एक क़तरा भी समुंदर था हमें
दिल जो पत्थर था वो पत्थर ही रहा
क्यों कोई दरपेश आज़र था हमें
अब हमें अपनी ख़बर रहती नहीं
मसअला मा'लूम घर घर था हमें
ये रक़ीब-ए-जाँ कभी था नामा-बर
इस से बेहतर तो कबूतर था हमें
किस क़दर रोते थे 'आरिफ़' फूट कर
एक कांधा जब मयस्सर था हमें
यूँ पस-ए-मंज़र का कब डर था हमें
फ़ाइलों से कह दिया था हाल-ए-दिल
यार बेहतर घर से दफ़्तर था हमें
जाम में होता ख़ुलूस-ए-दिल अगर
एक क़तरा भी समुंदर था हमें
दिल जो पत्थर था वो पत्थर ही रहा
क्यों कोई दरपेश आज़र था हमें
अब हमें अपनी ख़बर रहती नहीं
मसअला मा'लूम घर घर था हमें
ये रक़ीब-ए-जाँ कभी था नामा-बर
इस से बेहतर तो कबूतर था हमें
किस क़दर रोते थे 'आरिफ़' फूट कर
एक कांधा जब मयस्सर था हमें
48031 viewsghazal • Hindi