एक माहौल अछूता चाहूँ
By ahmad-nadeem-qasmiMay 25, 2024
एक माहौल अछूता चाहूँ
सहन के नाम पे सहरा चाहूँ
काएनातें मिरे ख़्वाबों की असीर
और क़ुदरत से मैं कितना चाहूँ
तर्बियत मेरी ज़मीं ने की है
में ख़लाओं में लपकना चाहूँ
जितने तारीक घरौंदे हैं वहाँ
दिल की क़िंदील जलाना चाहूँ
बख़्शवाने को गुनाह-ए-आदम
फिर से फ़िरदौस में जाना चाहूँ
दोज़ख़ इंसान पे हो जाए हराम
रब से ये वा'दा-ए-फ़र्दा चाहूँ
ख़ुश्क पत्ते न शजर से छीने
बस ये एहसान हवा का चाहूँ
मेरी ज़िद कौन करेगा पूरी
शाम को सुब्ह का तारा चाहूँ
मिरा हर काम अलग दुनिया से
जिस को चाहूँ उसे तन्हा चाहूँ
हिज्र की कितनी तमाज़त है 'नदीम'
अब किसी याद का साया चाहूँ
सहन के नाम पे सहरा चाहूँ
काएनातें मिरे ख़्वाबों की असीर
और क़ुदरत से मैं कितना चाहूँ
तर्बियत मेरी ज़मीं ने की है
में ख़लाओं में लपकना चाहूँ
जितने तारीक घरौंदे हैं वहाँ
दिल की क़िंदील जलाना चाहूँ
बख़्शवाने को गुनाह-ए-आदम
फिर से फ़िरदौस में जाना चाहूँ
दोज़ख़ इंसान पे हो जाए हराम
रब से ये वा'दा-ए-फ़र्दा चाहूँ
ख़ुश्क पत्ते न शजर से छीने
बस ये एहसान हवा का चाहूँ
मेरी ज़िद कौन करेगा पूरी
शाम को सुब्ह का तारा चाहूँ
मिरा हर काम अलग दुनिया से
जिस को चाहूँ उसे तन्हा चाहूँ
हिज्र की कितनी तमाज़त है 'नदीम'
अब किसी याद का साया चाहूँ
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