इक नई दास्ताँ सुनाने दो
By aisha-ayubMay 29, 2024
इक नई दास्ताँ सुनाने दो
आज की नींद फिर गँवाने दो
बेड़ियाँ तोड़ कर समाजों की
'इश्क़ में क़ैद हैं दिवाने दो
मेरे माज़ी के रेगज़ारों में
ख़त मिले हैं मुझे पुराने दो
आज रोएँगे हम भी जी भर के
ग़म तो बस एक है बहाने दो
उस को आज़ाद कर चुकी हूँ मैं
फिर भी कहता है मुझ को जाने दो
एक चेहरे से मैं परेशाँ हूँ
अब मुझे आईने सजाने दो
रक़्स करती है मुझ में ख़ामोशी
थक गई है उसे सुलाने दो
आज की नींद फिर गँवाने दो
बेड़ियाँ तोड़ कर समाजों की
'इश्क़ में क़ैद हैं दिवाने दो
मेरे माज़ी के रेगज़ारों में
ख़त मिले हैं मुझे पुराने दो
आज रोएँगे हम भी जी भर के
ग़म तो बस एक है बहाने दो
उस को आज़ाद कर चुकी हूँ मैं
फिर भी कहता है मुझ को जाने दो
एक चेहरे से मैं परेशाँ हूँ
अब मुझे आईने सजाने दो
रक़्स करती है मुझ में ख़ामोशी
थक गई है उसे सुलाने दो
41481 viewsghazal • Hindi