इक नई तहज़ीब का आग़ाज़ है उर्दू ग़ज़ल

By aatish-muradabadiJune 11, 2024
इक नई तहज़ीब का आग़ाज़ है उर्दू ग़ज़ल
हुस्न की ता'रीफ़ का अंदाज़ है उर्दू ग़ज़ल
जाने किस किस ने लहू दे कर सँवारा है इसे
दौर-ए-हाज़िर में मगर ना-साज़ है उर्दू ग़ज़ल


शा'इरों के ख़्वाब की तस्वीर बनती है कभी
दास्तान-ए-'इश्क़ में परवाज़ है उर्दू ग़ज़ल
दौर-ए-हाज़िर की हक़ीक़त भी बयाँ ये कर रही
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' से मिला ए'जाज़ है उर्दू ग़ज़ल


हुस्न की गहराइयों में डूब कर देखो ज़रा
'इश्क़ में लिपटी हुई गुल-नाज़ है उर्दू ग़ज़ल
नज़्म हो या हो रुबा'ई कहिये या क़ित'आ जनाब
शा'इरी की सिंफ़ का शहबाज़ है उर्दू ग़ज़ल


'मीर' 'ग़ालिब' 'दाग़' 'मोमिन' 'जौन' 'राहत' ने कहा
हर क़लम बोला यही मुम्ताज़ है उर्दू ग़ज़ल
दिल धड़क जाते हैं बस इक हुस्न की अंगड़ाई पर
आज 'आतिश' की वही हमराज़ है उर्दू ग़ज़ल


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