एक टूटी कमान रखता हूँ
By khayal-laddakhiFebruary 27, 2024
एक टूटी कमान रखता हूँ
फिर हथेली पे जान रखता हूँ
मुनफ़रिद अपनी शान रखता हूँ
इक बला का गुमान रखता हूँ
उन को उन की अना मुबारक हो
मैं भी अपना जहान रखता हूँ
दैर-ओ-मस्जिद से हूँ अगर वाक़िफ़
मय-कदे का भी ध्यान रखता हूँ
तर्ज़-ए-मसनद है ये ज़मीं मुझ को
छत को इक आसमान रखता हूँ
देर लगती है मुझ को गिरने में
साथ में पासबान रखता हूँ
मेरा बोला कोई नहीं बोले
मैं कहाँ हम-ज़बान रखता हूँ
तेग़ रखता हूँ मैं क़लम अपनी
लेक मीठी ज़बान रखता हूँ
ख़ूँ दिया है 'ख़याल' हर्फ़ों को
अब मैं लफ़्ज़ों में जान रखता हूँ
फिर हथेली पे जान रखता हूँ
मुनफ़रिद अपनी शान रखता हूँ
इक बला का गुमान रखता हूँ
उन को उन की अना मुबारक हो
मैं भी अपना जहान रखता हूँ
दैर-ओ-मस्जिद से हूँ अगर वाक़िफ़
मय-कदे का भी ध्यान रखता हूँ
तर्ज़-ए-मसनद है ये ज़मीं मुझ को
छत को इक आसमान रखता हूँ
देर लगती है मुझ को गिरने में
साथ में पासबान रखता हूँ
मेरा बोला कोई नहीं बोले
मैं कहाँ हम-ज़बान रखता हूँ
तेग़ रखता हूँ मैं क़लम अपनी
लेक मीठी ज़बान रखता हूँ
ख़ूँ दिया है 'ख़याल' हर्फ़ों को
अब मैं लफ़्ज़ों में जान रखता हूँ
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