फ़क़त ज़मीं ही नहीं आसमान मेरा है फ़क़ीर-ए-‘इश्क़ हूँ सारा जहान मेरा है हसब नसब की ये बातें तो काग़ज़ी हैं फ़क़त जहाँ भी 'इश्क़ है वो ख़ानदान मेरा है मिरा वजूद है क़ाएम इसी त'अल्लुक़ से हवाएँ उस की हैं और बादबान मेरा है मिरी ग़ज़ल अभी मायूस हो नहीं सकती अभी तो शहर में इक क़द्र-दान मेरा है अभी तो पर भी नहीं खोले उस ने उड़ने को अभी से कहने लगा आसमान मेरा है