फ़स्ल-ए-गुल में भी वही दौर-ए-ख़िज़ाँ है अब के

By ali-abbas-ummeedJune 2, 2024
फ़स्ल-ए-गुल में भी वही दौर-ए-ख़िज़ाँ है अब के
कैसा ग़म वक़्त के चेहरे से 'अयाँ है अब के
मश'अलें हैं न धुआँ है न सदा-ए-नाक़ूस
क्या ख़बर क़ाफ़िला-ए-दर्द कहाँ है अब के


ज़िंदगी वक़्त के दर तक जिसे ले आई थी
धुँदला धुँदला इसी इंसाँ का निशाँ है अब के
चारागर रहम न कर इस की ज़रूरत क्या है
मेरा हर ज़ख़्म मिरे दिल की ज़बाँ है अब के


लाला-ज़ारों से तो गुल-रंग लिपट आती थी
दिल के वीराने में हर सम्त धुआँ है अब के
मुझ पे वो सानेहा गुज़रा है असीरान-ए-क़फ़स
अपने साए से भी वहशत का गुमाँ है अब के


सर-ब-ज़ानू थीं तमन्नाएँ न जाने कब से
चश्म-ए-'उम्मीद' भी ख़ूँ-नाबा-फ़शाँ है अब के
40844 viewsghazalHindi