फ़स्ल-ए-गुल हो कि ख़िज़ाँ सब में चटकते आए हम हर इक दौर के दामन में महकते आए टूट जाना तो सितारों का मुक़द्दर ठहरा हम चमक वाले हैं चमकेंगे चमकते आए जो रिवायत है अज़ल से वो है अंजाम अपना अहल-ए-दिल वक़्त की सूली पे लटकते आए कितने इल्ज़ाम थे ता'ने थे शिकायत थी बहुत सब उसी दर पे मगर सर को पटकते आए हम जुनूँ वालों से कब दूर थी मंज़िल 'राही' अक़्ल वाले थे जो राहों में भटकते आए