फिर एक बार तिरा तज़्किरा निकल आया

By kaifi-wijdaniNovember 3, 2020
फिर एक बार तिरा तज़्किरा निकल आया
मुझे तराशा तो पैकर तिरा निकल आया
ये मेरे घर के दरीचों में रौशनी कैसी
यहाँ चराग़ का क्या सिलसिला निकल आया


जो नक़्श नक़्श असीरी का सेहर जानते थे
उन आईनों से भी साया मिरा निकल आया
मैं अपने शोर में कब तक दबा हुआ रहता
सदाएँ देता हुआ बे-सदा निकल आया


लिपट के रोता रहा वो बुझे चराग़ों से
कि ताक़ ताक़ कोई सिलसिला निकल आया
दिया था जिस को ज़माने ने तेरे क़ुर्ब का नाम
मिरे ही क़दमों से वो फ़ासला निकल आया


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