फ़ितरत की बंद मुट्ठियों को खोलता रहा

By haris-bilalFebruary 6, 2024
फ़ितरत की बंद मुट्ठियों को खोलता रहा
मैं आइना-मिज़ाज था और बोलता रहा
इक ख़्वाब सारे शहर में ले कर फिरा मुझे
इक लौ के साथ साथ दिया डोलता रहा


यूँही न था सिमटना मिरा फैलना मिरा
अपने किनारों पर मैं बदन तोलता रहा
मुझ पेड़ की जड़ों में उतर कर शिफ़ा हुआ
नुस्ख़ा जो ख़ाक-ए-पा में कोई रोलता रहा


दिल का कोई मकीन यूँही उठ के चल पड़ा
बहता हुआ रगों में कोई खौलता रहा
'हारिस' तमाम शोर-शराबे में तेरी मिस्ल
इक राग मेरे कान में रस घोलता रहा


87738 viewsghazalHindi