गाहे-गाहे मैं तुझे याद भी कर सकता हूँ

By salim-saleemFebruary 28, 2024
गाहे-गाहे मैं तुझे याद भी कर सकता हूँ
एक दिल है उसे बर्बाद भी कर सकता हूँ
‘आलम-ए-ख़्वाब में है तुझ से मुलाक़ात की शाम
तू नहीं तो तुझे ईजाद भी कर सकता हूँ


है बहुत सख़्त तिरी ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर मगर
एक दिन ख़ुद को मैं आज़ाद भी कर सकता हूँ
ख़ामुशी तोड़ रहा हूँ अभी अंदर अंदर
अपने बाहर इसे फ़ौलाद भी कर सकता हूँ


एक दिन देखना सहराओं से आते जाते
मैं तिरे शहर को हम-ज़ाद भी कर सकता हूँ
60818 viewsghazalHindi