ग़ैर से ही क्यों गिला-शिकवा रहे
By darshan-dayal-parwazNovember 16, 2021
ग़ैर से ही क्यों गिला-शिकवा रहे
मुश्किलों में अपना कब अपना रहे
रूठने के वक़्त ये रक्खो ख़याल
लौट कर आने का कुछ रस्ता रहे
चाहे कुछ भी हो तअल्लुक़ अर्श से
फ़र्श से इंसान का रिश्ता रहे
हर किसी के दिल में हो ये आरज़ू
दोस्तों से क़द मिरा ऊँचा रहे
झूटा वा'दा करने को समझो गुनाह
चाहे हालत कितनी भी ख़स्ता रहे
पीरी में करने लगे हैं हुज्जतें
उम्र भर 'पर्वाज़' बे-परवा रहे
मुश्किलों में अपना कब अपना रहे
रूठने के वक़्त ये रक्खो ख़याल
लौट कर आने का कुछ रस्ता रहे
चाहे कुछ भी हो तअल्लुक़ अर्श से
फ़र्श से इंसान का रिश्ता रहे
हर किसी के दिल में हो ये आरज़ू
दोस्तों से क़द मिरा ऊँचा रहे
झूटा वा'दा करने को समझो गुनाह
चाहे हालत कितनी भी ख़स्ता रहे
पीरी में करने लगे हैं हुज्जतें
उम्र भर 'पर्वाज़' बे-परवा रहे
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