ग़ज़ल
By October 17, 2022
ग़ज़ल
जिन रस्मों की ख़ातिर तुमने आग़ लगाई है
उन रस्मों को आग़ में डालो ख़त्म बुराई है
जिनको सौदा कर देते हो पाक़ीज़ा कहकर
उन जिस्मों की क़ीमत तुमने ख़ूब लगाई है
ज़ीस्त के मैंने जिस कर्ज़े को कभी नहीं मांगा
उस कर्ज़े की मुझे चुकानी पाई-पाई है
रस्म की ख़ातिर जिस बेघर का जीवन जेल हुआ
क्या अचरज गर क़ैद ही उसको लगी रिहाई है
जब इस पार थे उनको दीखा बहुत बड़ा परबत
लेकिन जब उस पार पहुंच गए
बोले राई है उनमें से इक बोला यह तो भ्रष्टाचारी है दूजा बोला क्या कहते हो मेरा भाई है -संजय ग्रोवर
बोले राई है उनमें से इक बोला यह तो भ्रष्टाचारी है दूजा बोला क्या कहते हो मेरा भाई है -संजय ग्रोवर
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