ग़ज़लजिन रस्मों की ख़ातिर तुमने आग़ लगाई हैउन रस्मों को आग़ में डालो ख़त्म बुराई हैजिनको सौदा कर देते हो पाक़ीज़ा कहकरउन जिस्मों की क़ीमत तुमने ख़ूब लगाई हैज़ीस्त के मैंने जिस कर्ज़े को कभी नहीं मांगाउस कर्ज़े की मुझे चुकानी पाई-पाई हैरस्म की ख़ातिर जिस बेघर का जीवन जेल हुआ क्या अचरज गर क़ैद ही उसको लगी रिहाई हैजब इस पार थे उनको दीखा बहुत बड़ा परबतलेकिन जब उस पार पहुंच गए, बोले राई हैउनमें से इक बोला यह तो भ्रष्टाचारी हैदूजा बोला क्या कहते हो मेरा भाई है -संजय ग्रोवर