ग़म उतारा गया सभी के लिए
By aamir-azherOctober 4, 2024
ग़म उतारा गया सभी के लिए
अश्क उतरे हैं आदमी के लिए
इक तजल्ली मुझे 'इनायत हो
मेरी आँखों की रौशनी के लिए
जी के लगता नहीं मुनासिब है
ज़िंदगी लफ़्ज़ ज़िंदगी के लिए
बार होता रहा किसी के सिपुर्द
शुक्र करता रहा किसी के लिए
मैं ने हद-दर्जा कोशिशें कर लीं
दिल बना ही नहीं ख़ुशी के लिए
कुछ दरिंदे भी जाने जाते हैं
अपनी इंसान-दोस्ती के लिए
सब नहीं जानते ये वो दर है
यूँ तो दरवाज़ा है सभी के लिए
उस ने बादल हटा लिए 'आमिर'
चंद लम्हों की चाँदनी के लिए
अश्क उतरे हैं आदमी के लिए
इक तजल्ली मुझे 'इनायत हो
मेरी आँखों की रौशनी के लिए
जी के लगता नहीं मुनासिब है
ज़िंदगी लफ़्ज़ ज़िंदगी के लिए
बार होता रहा किसी के सिपुर्द
शुक्र करता रहा किसी के लिए
मैं ने हद-दर्जा कोशिशें कर लीं
दिल बना ही नहीं ख़ुशी के लिए
कुछ दरिंदे भी जाने जाते हैं
अपनी इंसान-दोस्ती के लिए
सब नहीं जानते ये वो दर है
यूँ तो दरवाज़ा है सभी के लिए
उस ने बादल हटा लिए 'आमिर'
चंद लम्हों की चाँदनी के लिए
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