घाव जितने गहरे हों मैं भूल जाता हूँ सभी
By shahzad-niazFebruary 29, 2024
घाव जितने गहरे हों मैं भूल जाता हूँ सभी
जान-ए-जाँ जान-ए-जिगर को मुस्कुराता देख कर
फीका साज़ीना लगे अलग़ूज़ा बरबत पर मुझे
जब कभी जानाँ को सुन लूँ गुनगुनाता देख कर
दूर हर इक ग़म करे ऐसी मिरी दम-साज़ है
थाम ले मुश्किल में मुझ को डगमगाता देख कर
माँद पड़ जाती है उजली माहताबी हर किरन
दीप उन आँखों में रौशन झिलमिलाता देख कर
जान-ए-जाँ जान-ए-जिगर को मुस्कुराता देख कर
फीका साज़ीना लगे अलग़ूज़ा बरबत पर मुझे
जब कभी जानाँ को सुन लूँ गुनगुनाता देख कर
दूर हर इक ग़म करे ऐसी मिरी दम-साज़ है
थाम ले मुश्किल में मुझ को डगमगाता देख कर
माँद पड़ जाती है उजली माहताबी हर किरन
दीप उन आँखों में रौशन झिलमिलाता देख कर
44415 viewsghazal • Hindi