गो अब मिरे वुजूद पे सर है न दोश है
By azwar-shiraziFebruary 26, 2024
गो अब मिरे वुजूद पे सर है न दोश है
फिर भी वही जुनूँ वही जोश-ओ-ख़रोश है
तुझ सा कोई नहीं है वगरना जहान में
कोई ज़हीन है तो कोई सख़्त-कोश है
तू ने रखा न हल्क़ा-ए-अहबाब में जिसे
वो शख़्स आज भी तिरा हल्क़ा-ब-गोश है
रन में हमें रजज़ की ज़रूरत नहीं कि अब
इतना बदन में ख़ून नहीं जितना जोश है
इदराक से फ़ुज़ूँ है मिरी हालत-ए-जुनूँ
तू जानता नहीं कि तुझे 'अक़्ल-ओ-होश है
इंसान के मिज़ाज में यकसानियत नहीं
मैं कैसे मान जाऊँ कि बंदा सरोश है
इतना ग़ुरूर क़स्र-ए-शही पर न कीजिए
याँ कोई मुस्तक़िल नहीं ख़ाना-ब-दोश है
बस मैं ही चुप नहीं हूँ सर-ए-बोसतान-ए-'इश्क़
बुलबुल भी गुल के साथ बराबर ख़मोश है
ये कौन पढ़ रहा है मरासी अनीस के
हर सम्त मर्हबा की सदा ज़ेब-ए-गोश है
वो आँख आँख है कि जो रखती है मा'रिफ़त
वो गोश गोश है जो हक़ीक़त-नियोश है
मैं जो हुआ हूँ क़र्या-ब-क़र्या ज़लील-ओ-ख़्वार
इस में भी तेरे तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल का दोश है
वा'इज़ बुरा न कह मिरी बज़्म-ए-नशात को
याँ पर तिरी बहिश्त से कम नाव-नोश है
इतनी शफ़क़-नुमा है रुख़-ए-यार की फबन
जितनी चराग़-ए-शाम की लौ सुर्ख़-पोश है
फिर भी वही जुनूँ वही जोश-ओ-ख़रोश है
तुझ सा कोई नहीं है वगरना जहान में
कोई ज़हीन है तो कोई सख़्त-कोश है
तू ने रखा न हल्क़ा-ए-अहबाब में जिसे
वो शख़्स आज भी तिरा हल्क़ा-ब-गोश है
रन में हमें रजज़ की ज़रूरत नहीं कि अब
इतना बदन में ख़ून नहीं जितना जोश है
इदराक से फ़ुज़ूँ है मिरी हालत-ए-जुनूँ
तू जानता नहीं कि तुझे 'अक़्ल-ओ-होश है
इंसान के मिज़ाज में यकसानियत नहीं
मैं कैसे मान जाऊँ कि बंदा सरोश है
इतना ग़ुरूर क़स्र-ए-शही पर न कीजिए
याँ कोई मुस्तक़िल नहीं ख़ाना-ब-दोश है
बस मैं ही चुप नहीं हूँ सर-ए-बोसतान-ए-'इश्क़
बुलबुल भी गुल के साथ बराबर ख़मोश है
ये कौन पढ़ रहा है मरासी अनीस के
हर सम्त मर्हबा की सदा ज़ेब-ए-गोश है
वो आँख आँख है कि जो रखती है मा'रिफ़त
वो गोश गोश है जो हक़ीक़त-नियोश है
मैं जो हुआ हूँ क़र्या-ब-क़र्या ज़लील-ओ-ख़्वार
इस में भी तेरे तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल का दोश है
वा'इज़ बुरा न कह मिरी बज़्म-ए-नशात को
याँ पर तिरी बहिश्त से कम नाव-नोश है
इतनी शफ़क़-नुमा है रुख़-ए-यार की फबन
जितनी चराग़-ए-शाम की लौ सुर्ख़-पोश है
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