गुमराह हम हुज़ूर बहुत दिन नहीं रहे
By gyanendra-pathakSeptember 4, 2022
गुमराह हम हुज़ूर बहुत दिन नहीं रहे
अपनी जड़ों से दूर बहुत दिन नहीं रहे
सदियों में जानवर से हम इंसाँ बने मगर
वहशत की ज़द से दूर बहुत दिन नहीं रहे
उस आख़िरी बुज़ुर्ग के जाने के बा'द फिर
घर के अदब-शुऊ'र बहुत दिन नहीं रहे
जिन को गुमाँ था अपने जवानी के दौर पर
वो सब गुमाँ में चूर बहुत दिन नहीं रहे
बहके हमारे दिल भी फ़सादों के दौर में
दिल में मगर फ़ुतूर बहुत दिन नहीं रहे
अपनी जड़ों से दूर बहुत दिन नहीं रहे
सदियों में जानवर से हम इंसाँ बने मगर
वहशत की ज़द से दूर बहुत दिन नहीं रहे
उस आख़िरी बुज़ुर्ग के जाने के बा'द फिर
घर के अदब-शुऊ'र बहुत दिन नहीं रहे
जिन को गुमाँ था अपने जवानी के दौर पर
वो सब गुमाँ में चूर बहुत दिन नहीं रहे
बहके हमारे दिल भी फ़सादों के दौर में
दिल में मगर फ़ुतूर बहुत दिन नहीं रहे
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