गुज़रे मौसम का चलन दिल से मिरे गोया है
By aftab-shahNovember 28, 2024
गुज़रे मौसम का चलन दिल से मिरे गोया है
तुझ को खो कर भी कहाँ दिल ने तुझे खोया है
ज़ब्त के अश्क दबाए हैं तिरे होने पर
चाँद हिजरत के महीनों में बहुत रोया है
हर घड़ी सोच को बाँधा है तिरी यादों से
हर घड़ी याद को अश्कों से तिरी धोया है
वस्ल की चाह में देखे हैं ज़माने कितने
कितनी सदियों से तिरा मजनूँ नहीं सोया है
किस ने साज़िश की ज़मीनों पे हैं काटी फ़स्लें
ज़हर का बीज बता किस ने यहाँ बोया है
हम ने बैलों को नहीं बाँधा ज़रा ग़ौर करो
रिज़्क़ ने बाँध के इंसाँ को यहाँ जोया है
तुझ को खो कर भी कहाँ दिल ने तुझे खोया है
ज़ब्त के अश्क दबाए हैं तिरे होने पर
चाँद हिजरत के महीनों में बहुत रोया है
हर घड़ी सोच को बाँधा है तिरी यादों से
हर घड़ी याद को अश्कों से तिरी धोया है
वस्ल की चाह में देखे हैं ज़माने कितने
कितनी सदियों से तिरा मजनूँ नहीं सोया है
किस ने साज़िश की ज़मीनों पे हैं काटी फ़स्लें
ज़हर का बीज बता किस ने यहाँ बोया है
हम ने बैलों को नहीं बाँधा ज़रा ग़ौर करो
रिज़्क़ ने बाँध के इंसाँ को यहाँ जोया है
60716 viewsghazal • Hindi