हाल दिल का अयाँ नहीं होता हम से अब कुछ बयाँ नहीं होता बुत-कदा हो हरम कि मय-ख़ाना ज़िक्र तेरा कहाँ नहीं होता इक नज़र ख़ुद पे डालिए साहब आइना बद-ज़बाँ नहीं होता मौसम-ए-गुल भी इस बरस हम पर जाने क्यों मेहरबाँ नहीं होता उफ़ तसव्वुर के सिलसिले 'ज़ाहिद' ख़त्म ये कारवाँ नहीं होता