हैं मनाज़िर सब बहम-पर्दा नज़र बाक़ी नहीं

By shabnam-shakeelNovember 18, 2020
हैं मनाज़िर सब बहम-पर्दा नज़र बाक़ी नहीं
सामने मंज़िल है लेकिन रहगुज़र बाक़ी नहीं
शाइ'री जिस ने छुड़ाए थे जहाँ के कारोबार
अब तकल्लुफ़ बरतरफ़ इस में हुनर बाक़ी नहीं


शहर-ए-नौ में क्यूँ रहे अब ये शिकस्ता सा मकाँ
गर खड़ी दीवार कोई है तो दर बाक़ी नहीं
वो तो जादू का बना था हाए ऐसा ही न हो
लौट कर पहुँचूँ तो देखूँ अब वो घर बाक़ी नहीं


मुतमइन थे ख़ुश थे और दुनिया में भी मसरूफ़ थे
हम तो समझे थे कि अब फ़न का सफ़र बाक़ी नहीं
अब ये लाज़िम है कि इस दुनिया में जीना सीख लूँ
ख़ूब पर क़ाने रहूँ जब ख़ूब-तर बाक़ी नहीं


आप सोने का क़फ़स लाने की ज़हमत मत करें
हम वो ताइर हैं कि जिन के बाल-ओ-पर बाक़ी नहीं
22364 viewsghazalHindi