हैरत को मुज़्दा गर्म है बाज़ार-ए-आईना
By abdul-hadi-wafaApril 23, 2024
हैरत को मुज़्दा गर्म है बाज़ार-ए-आईना
ख़ूबान-ए-ख़ुद-नुमा हैं ख़रीदार-ए-आईना
हाँ 'आशिक़ों को कश्मकश-ए-जौर से फ़राग़
वो है असीर-ए-शाना गिरफ़्तार-ए-आईना
मुझ को भी यूँ है ज़ानु-ए-हसरत से वास्ता
'तू' जैसे हर घड़ी है निगह-दार-ए-आईना
दल्लाल चश्म-ए-शोख़ है क़ीमत नज़ारा है
और हुस्न बे-हिजाब ख़रीदार-ए-आईना
नाकाम तिरी दीद से हैं ख़्वाब में भी हम
लाएँ कहाँ से तालेअ'-ए-बे-दार-ए-आईना
हुस्न-ए-अमल की दाद सिकंदर को मिल गई
वो रशक-ए-आईना है तलबगार आईना
ख़ूबान-ए-ख़ुद-नुमा हैं ख़रीदार-ए-आईना
हाँ 'आशिक़ों को कश्मकश-ए-जौर से फ़राग़
वो है असीर-ए-शाना गिरफ़्तार-ए-आईना
मुझ को भी यूँ है ज़ानु-ए-हसरत से वास्ता
'तू' जैसे हर घड़ी है निगह-दार-ए-आईना
दल्लाल चश्म-ए-शोख़ है क़ीमत नज़ारा है
और हुस्न बे-हिजाब ख़रीदार-ए-आईना
नाकाम तिरी दीद से हैं ख़्वाब में भी हम
लाएँ कहाँ से तालेअ'-ए-बे-दार-ए-आईना
हुस्न-ए-अमल की दाद सिकंदर को मिल गई
वो रशक-ए-आईना है तलबगार आईना
96072 viewsghazal • Hindi