हक़-बयानी के चराग़ों को जला कर आ गया
By shahnawaz-ansariMarch 23, 2021
हक़-बयानी के चराग़ों को जला कर आ गया
उस के दिल को रौशनी का घर बना कर आ गया
एक दीवाना जिसे प्यासा समझते थे सभी
वो झुलसती रेत पे दरिया बहा कर आ गया
था सकूँ दरकार मुझ को ख़ामुशी के शहर में
इस लिए आवाज़ मिट्टी में दबा कर आ गया
शर्त थी ग़र्क़ाब होना हाँ मगर तेरी रज़ा
फिर समुंदर पर कोई रस्ता बना कर आ गया
एक जुगनू रक़्स करता था फ़सील-ए-हिज्र पर
और मैं पागल चराग़ों को जला कर आ गया
उस के दिल को रौशनी का घर बना कर आ गया
एक दीवाना जिसे प्यासा समझते थे सभी
वो झुलसती रेत पे दरिया बहा कर आ गया
था सकूँ दरकार मुझ को ख़ामुशी के शहर में
इस लिए आवाज़ मिट्टी में दबा कर आ गया
शर्त थी ग़र्क़ाब होना हाँ मगर तेरी रज़ा
फिर समुंदर पर कोई रस्ता बना कर आ गया
एक जुगनू रक़्स करता था फ़सील-ए-हिज्र पर
और मैं पागल चराग़ों को जला कर आ गया
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