हम भी सुनते जो तिरे हुस्न के चर्चे होते

By baldev-singh-hamdamOctober 28, 2020
हम भी सुनते जो तिरे हुस्न के चर्चे होते
काश उस वक़्त तिरी बज़्म में बैठे होते
दिल के वो दाग़ जो सीने में छुपा रक्खे हैं
ऐ मसीहा वो कभी तू ने भी देखे होते


हम समझ ही न सके तेरी नज़र का मफ़्हूम
वर्ना यूँ बुत से बने राह में बैठे होते
ग़म-ए-दौराँ की कड़ी धूप ये तपता सहरा
काश दो-गाम तिरी ज़ुल्फ़ के साए होते


हम जला लेते अगर तेरी मोहब्बत के चराग़
इन अँधेरों की जगह दिल में उजाले होते
दिल में होता न कभी ज़ौक़-ए-तजस्सुस का हुजूम
तुझ से दुनिया में अगर और भी चेहरे होते


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