हम मूँद के पलकें कभी रोया नहीं करते आँखों में जो आँसू हो तो सोया नहीं करते हर तल्ख़ हक़ीक़त को उड़ाते हैं हँसी में हम लोग किसी बात पे रोया नहीं करते इक उम्र गुज़ारी है तो मा'लूम हुआ है कश्ती को किनारे पे डुबोया नहीं करते आँखों से जो झड़ते हैं वो आँसू ही बहुत हैं कलियों का तो हम हार पिरोया नहीं करते ज़ेबाइश-ए-दामान-ए-मोहब्बत है इसी से लग जाए अगर दाग़ तो धोया नहीं करते इज़हार-ए-मोहब्बत कभी उस दुश्मन-ए-जाँ से इस तरह से करते हैं कि गोया नहीं करते खो कर तुम्हें एहसास हुआ मुझ को ये 'शहनाज़' यूँ पा के किसी दोस्त को खोया नहीं करते