हम न हँसते हैं और न रोते हैं उम्र हैरत में अपनी खोते हैं खा के ग़म ख़्वान-ए-इश्क़ के मेहमान हाथ ख़ून-ए-जिगर से धोते हैं वस्ल होता है जिन को दुनिया में यारब ऐसे भी लोग होते हैं कोस-ए-रहलत है जुम्बिश-ए-हर-दम आह तिस पर भी यार सोते हैं दिल लगा उस से मर्दुम-ए-दीदा साथ अपने हमें डुबोते हैं आह-ओ-नाला से वो ख़फ़ा है अबस काँटे हम अपने हक़ में बूते हैं याद आती हैं उस की जब बातें दिल 'हसन' दोनों मिल के रोते हैं