हम पर निगाह-ए-लुत्फ़ कभी है कभी नहीं

By pandit-vidya-ratan-asiNovember 12, 2020
हम पर निगाह-ए-लुत्फ़ कभी है कभी नहीं
तुम ही कहो ये क्या है अगर दिल लगी नहीं
गो जी रहा है आज भी कोई तिरे बग़ैर
लेकिन ये ज़िंदगी तो कोई ज़िंदगी नहीं


उस की बला से कोई जिए या कोई मिरे
जिस को किसी के दर्द का एहसास ही नहीं
दिल में न आरज़ू है कोई अब न वलवला
इक शम्अ' जल रही है मगर रौशनी नहीं


आख़िर हम उन के वा'दों पर ईमान लाएँ क्या
जो हम पे मेहरबान अभी है अभी नहीं
इस गुफ़्तुगू की तर्ज़ में तरमीम कीजिए
कब तक मैं ख़ामोशी से सुनूँ आप की नहीं


'आसी' ज़बान-ए- ख़ामुशी में दास्तान-ए-शौक़
हम ने कही है बारहा उस ने सुनी नहीं
79945 viewsghazalHindi