हमें नफ़रत है ऐसी ज़िंदगी से तअल्लुक़ ही न हो जिस को ख़ुशी से इलाही क्या ज़माना आ गया है है नफ़रत आदमी को आदमी से बढ़ी है और दिल की बे-क़रारी कहा है हाल-ए-दिल जब भी किसी से हमारी सादगी पर ग़ौर कीजिए शिकायत आप की और आप ही से उन्हें शिकवा है 'आसी' ज़िंदगी का नहीं है जिन को उल्फ़त ज़िंदगी से