हम-नशीनो कुछ नहीं रक्खा यहाँ पर कुछ नहीं छोड़ दो इस की हवस दुनिया के अंदर कुछ नहीं दर खुला ही रहने दो घर से निकलते वक़्त तुम कुछ अगर है तो तुम्हारी ज़ात है घर कुछ नहीं बाएँ में सूरज रहे और चाँद दहने हाथ में दिल अगर रौशन नहीं तो शोबदा-गर कुछ नहीं मैं सरापा रात भी हूँ मैं सरापा सुब्ह भी मुझ से कम-तर कुछ नहीं और मुझ से बरतर कुछ नहीं इक चमक आँखों में आ जाती है उस को देख कर वर्ना दिल तो मुत्तफ़िक़ है आप से, ज़र कुछ नहीं आइने से रो के पूछा जब कभी मैं कौन हूँ आईना बोला वहीं फ़ौरन पलट कर कुछ नहीं वक़्त ने सब दूर कर दी हैं मिरी ख़ुश-फ़हमियाँ ये मिरा मुख़्लिस है मुझ को इस से बढ़ कर कुछ नहीं