हमवार खींच कर कभी दुश्वार खींच कर
By ali-tasifJune 3, 2024
हमवार खींच कर कभी दुश्वार खींच कर
तंग आ चुका हूँ साँस लगातार खींच कर
मैदाँ में गर न आता मैं तलवार खींच कर
ले जाते लोग मिस्र के बाज़ार खींच कर
ख़ातिर में कुछ न लाएगा ये सैल-ए-अश्क है
तुम रोकते हो रेत की दीवार खींच कर
उक्ता चुका ये दिल भी नज़र भी मैं आप भी
मुद्दत से तेरी हसरत-ए-दीदार खींच कर
ऐ ज़ीस्त तेरा फ़ैसला करने लगा था मैं
लाते अगर न मुझ को मिरे यार खींच कर
हरगिज़ ये ऐसे मानने वाली नहीं मियाँ
दुनिया को दो लगा सर-ए-बाज़ार खींच कर
जाता रहा वो कैफ़-ए-निहाँ जो चुभन में था
पछता रहा हूँ पाँव के अब ख़ार खींच कर
मेरे ख़याल में थी कहानी यहीं तलक
अब क्यों बढ़ाए जाते हैं किरदार खींच कर
'तासिफ़' अगर है माल खरा तो यक़ीन रख
लाएगा आप अपने ख़रीदार खींच कर
तंग आ चुका हूँ साँस लगातार खींच कर
मैदाँ में गर न आता मैं तलवार खींच कर
ले जाते लोग मिस्र के बाज़ार खींच कर
ख़ातिर में कुछ न लाएगा ये सैल-ए-अश्क है
तुम रोकते हो रेत की दीवार खींच कर
उक्ता चुका ये दिल भी नज़र भी मैं आप भी
मुद्दत से तेरी हसरत-ए-दीदार खींच कर
ऐ ज़ीस्त तेरा फ़ैसला करने लगा था मैं
लाते अगर न मुझ को मिरे यार खींच कर
हरगिज़ ये ऐसे मानने वाली नहीं मियाँ
दुनिया को दो लगा सर-ए-बाज़ार खींच कर
जाता रहा वो कैफ़-ए-निहाँ जो चुभन में था
पछता रहा हूँ पाँव के अब ख़ार खींच कर
मेरे ख़याल में थी कहानी यहीं तलक
अब क्यों बढ़ाए जाते हैं किरदार खींच कर
'तासिफ़' अगर है माल खरा तो यक़ीन रख
लाएगा आप अपने ख़रीदार खींच कर
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