हंगामा गर्म हस्ती-ए-ना-पाएदार का चश्मक है बर्क़ की कि तबस्सुम शरार का मैं जो शहीद हूँ लब-ए-ख़ंदान-ए-यार का क्या क्या चराग़ हँसता है मेरे मज़ार का हो राज़-ए-दिल न यार से पोशीदा यार का पर्दा न दरमियाँ हो जो दिल के ग़ुबार का उस रू-ए-ताबनाक पे हर क़तरा-ए-अरक़ गोया कि इक सितारा है सुब्ह-ए-बहार का है ऐन-ए-वस्ल में भी मिरी चश्म सू-ए-दर लपका जो पड़ गया है मुझे इंतिज़ार का पहुँचेगा तेरे पास कबूतर से पेश-तर मकतूब-ए-शौक़ उड़ा के तिरे बे-क़रार का हो पाक-दामनों को ख़लिश गर से क्या ख़तर खटका नहीं निगाह को मिज़्गाँ के ख़ार का बुझने की दिल की आग नहीं ज़ेर-ए-ख़ाक भी होगा दरख़्त गोर पे मेरी चिनार का देख अपने दर-ए-गोश को आरिज़ से मुत्तसिल देखा न हो सितारा जो सुब्ह-ए-बहार का पूछे है क्या हलावत-ए-तलख़ाबा-ए-सरिश्क शर्बत है बाग़-ए-ख़ुल्द-ए-बरीं के अनार का है दिल की दाओ घात में मिज़्गाँ से चश्म-ए-यार है शौक़ उस की टट्टी की ओझल शिकार का क़ासिद लिखूँ लिफ़ाफ़ा-ए-ख़त को ग़ुबार से ता जाने वो ये ख़त है किसी ख़ाकसार का ऐ 'ज़ौक़' होश गर है तो दुनिया से दूर भाग इस मय-कदे में काम नहीं होशियार का