हर एक पहलू-ए-ख़ुश-मंज़री बिखरता रहा

By salim-saleemFebruary 28, 2024
हर एक पहलू-ए-ख़ुश-मंज़री बिखरता रहा
वो आइने में बहुत देर तक सँवरता रहा
मैं रतजगे के लिए उस के पास आया था
तो फिर वो क्यों मिरी आँखों में ख़्वाब भरता रहा


अगर नहीं है ये मेरा शु'ऊर दुश्मन-ए-जाँ
तो मुझ में कौन था जो मुझ से जंग करता रहा
मिरी निगाह में नीलाहटें हैं फैली हुई
ये कैसा ज़हर मिरी रूह में उतरता रहा


तमाम लोग हैं इस तेज़ धूप के शाकी
मैं अपने जिस्म की परछाइयों से डरता रहा
47238 viewsghazalHindi