हर इक दरवेश का क़िस्सा अलग है
By rasa-chughtaiNovember 13, 2020
हर इक दरवेश का क़िस्सा अलग है
मगर तर्ज़-ए-बयाँ अपना अलग है
ग़नीमत है बहम मिल बैठना भी
अगरचे वस्ल का लम्हा अलग है
मिले थे कब जो हम अब फिर मिलेंगे
हमारा आप का रस्ता अलग है
इबारत है शुऊर-ए-ज़िंदगी से
न ये दुनिया न वो दुनिया अलग है
नहीं है और वाबस्ता है सब से
हमारे दर्द का रिश्ता अलग है
मगर तर्ज़-ए-बयाँ अपना अलग है
ग़नीमत है बहम मिल बैठना भी
अगरचे वस्ल का लम्हा अलग है
मिले थे कब जो हम अब फिर मिलेंगे
हमारा आप का रस्ता अलग है
इबारत है शुऊर-ए-ज़िंदगी से
न ये दुनिया न वो दुनिया अलग है
नहीं है और वाबस्ता है सब से
हमारे दर्द का रिश्ता अलग है
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