हर नफ़स आईना मौज-ए-फ़ना होता है

By aish-meeruthiSeptember 16, 2024
हर नफ़स आईना मौज-ए-फ़ना होता है
आह करता हूँ तो दर्द और सिवा होता है
खिंचती जाती है उसी सम्त जबीन-ए-सज्दा
जिस तरफ़ आप का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा होता है


फूट जा आबला-ए-पा कि बढ़े तेरा वक़ार
ख़ार-ए-सहरा तुझे अंगुश्त-नुमा होता है
जुन्बिशें होने लगीं पर्दा-ए-ज़ंगारी में
नाला-ए-आशिक़-ए-दिल-गीर बला होता है


वो न आएँगे उन्हें ज़िद है तमन्ना से मिरी
मैं कहूँ लाख तो क्या मेरा कहा होता है
है जबीं ख़ाक पे और 'अर्श-ए-मु'अल्ला पे दिमाग़
नक़्शा आँखों में तिरे दर का खिंचा होता है


साइल आया है तिरे दर पे ख़ुदी को खो कर
देखना है मुझे क्या आज 'अता होता है
हर रविश उन की क़यामत है क़यामत ऐ 'ऐश'
जिस तरफ़ जाते हैं इक हश्र बपा होता है


81571 viewsghazalHindi