हर रोज़ राह तकती हैं मेरे सिंघार की

By shabnam-shakeelNovember 18, 2020
हर रोज़ राह तकती हैं मेरे सिंघार की
घर में खिली हुई हैं जो कलियाँ अनार की
कल उन के भी ख़याल को मैं ने झटक दिया
हद हो गई है मेरे भी सब्र-ओ-क़रार की


माज़ी पे गुफ़्तुगू से वो घबरा रहे थे आज
मैं ने भी आज बात वही बार बार की
अब प्यार की अदा पे भी झुँझला रहे हैं वो
कहते हैं मुझ को फ़िक्र है कुछ कारोबार की


अक्सर तो लोग पहली सदा पर ही बिक गए
बोली तो गो लगी थी बड़े ए'तिबार की
ज़िंदा रही तो नाम भी लूँगी न प्यार का
सौगंद है मुझे मिरे पर्वरदिगार की


सब का ख़याल घर की सजाट की महफ़िलें
मैं ने भी अब ये आम रविश इख़्तियार की
82033 viewsghazalHindi