हर सम्त इक धुआँ है हर गाम तीरगी है

By abid-barelviDecember 2, 2024
हर सम्त इक धुआँ है हर गाम तीरगी है
दुनिया तिरे सफ़र में ये कैसी रौशनी है
ज़ुल्मत की रहगुज़र पे उल्फ़त सिसक रही है
ये कौन बे-हिसी है ये कौन बेबसी है


तन्हा ही चल रहे हम मंज़िल की आरज़ू में
हर सुब्ह अजनबी है हर शाम अजनबी है
अपनी ही धुन में सब हैं हर शख़्स दर-ब-दर है
ये कैसी जुस्तुजू है ये कैसी तिश्नगी है


हम मर के जी रहे हैं ख़्वाबों की अंजुमन में
नाकाम हसरतें हैं गुमनाम ज़िंदगी है
'आबिद' तुम्हारे हक़ में हर लब पे इक गिला है
हर दिल में इक चुभन है हर आँख शबनमी है


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