हर सम्त से उठता है धुआँ शहर के लोगो ये शहर तो था शहर-ए-अमाँ शहर के लोगो दीवानगी-ए-अहल-ए-ख़िरद पहुँची यहाँ तक हर शख़्स का चेहरा है धुआँ शहर के लोगो रिफ़अत किसे मिलती है फ़रावानी-ए-ज़र से किरदार से हो फ़ख़्र-ए-ज़माँ शहर के लोगो ले आई यहाँ तक हमें किरदार की पस्ती अज़्मत है न अज़्मत के निशाँ शहर के लोगो परवर्दा-ए-ईमान-ओ-यक़ीं होते हुए भी ये वसवसा-ए-वहम-ओ-गुमाँ शहर के लोगो फेंको न ख़मोशी पे मिरी तंज़ के पत्थर अब भी है मिरे मुँह में ज़बाँ शहर के लोगो पत्थर की चटानों से रुका है न रुकेगा 'इनआ'म' है इक जू-ए-रवाँ शहर के लोगो