हर तरफ़ सोज़ का अंदाज़ जुदागाना है मुतमइन शम्अ' है या रक़्स में परवाना है बरतर-अज़-वहम-ओ-तसव्वुर मिरा मय-ख़ाना है ज़िंदगी क्या है मिरी लग़्ज़िश-ए-मस्ताना है वो जो इक शौक़-ए-जुनूँ-साज़ का अफ़्साना है आँख शायद कहे दिल तो अभी दीवाना है होश आया न कभी मैं ने जुनूँ को समझा दावर-ए-हश्र यहीं तक मिरा अफ़्साना है अब निगह उन की निगाहों से मिले या न मिले ख़ुद ही पहुँचेगा जो तक़दीर का पैमाना है आप सुन लें तो कुछ आ जाए असर भी शायद यूँ तो हर तरह मुकम्मल मिरा अफ़्साना है हुस्न इक फूल सही नाज़ुक-ओ-रंगीं लेकिन इश्क़ से दूर है जब तक गुल-ए-वीराना है कसरत-ए-फ़हम ने इतना भी समझने न दिया मैं हूँ अफ़्साना कि दुनिया मिरा अफ़्साना है ऐ ख़ुशा ताला-ए-बेदार-ए-मोहब्बत 'बासित' आज उन की भी नज़र में मिरा अफ़्साना है