हर्फ़-हर्फ़ चमका कर लफ़्ज़-लफ़्ज़ महका कर
By shamim-danishFebruary 29, 2024
हर्फ़-हर्फ़ चमका कर लफ़्ज़-लफ़्ज़ महका कर
जब किसी से बोला कर मुस्कुरा के बोला कर
ले के हुस्न की दौलत रात को न निकला कर
दिल-जलों की बस्ती है कुछ तो ख़ौफ़ रक्खा कर
शैख़ हो बरहमन हो संत हो क़लंदर हो
सब ख़ुदा के बंदे हैं सब का मान रक्खा कर
लफ़्ज़ लफ़्ज़ से कैसे रौशनी निकलती है
शा'इरों में बैठा कर ये कमाल देखा कर
मैं ने कुछ फ़क़ीरों की जूतियाँ उठाई हैं
ऐ अमीर-ए-शहर अब तो मेरे हाथ चूम आ कर
रोज़ तो नहीं आते चाहतों के ये मौसम
जब कोई घटा बरसे थोड़ा भीग जाया कर
सादगी ज़रूरी है थोड़ी सी मोहब्बत में
थोड़ा एहतियातन भी छुप-छुपा के देखा कर
जब किसी से बोला कर मुस्कुरा के बोला कर
ले के हुस्न की दौलत रात को न निकला कर
दिल-जलों की बस्ती है कुछ तो ख़ौफ़ रक्खा कर
शैख़ हो बरहमन हो संत हो क़लंदर हो
सब ख़ुदा के बंदे हैं सब का मान रक्खा कर
लफ़्ज़ लफ़्ज़ से कैसे रौशनी निकलती है
शा'इरों में बैठा कर ये कमाल देखा कर
मैं ने कुछ फ़क़ीरों की जूतियाँ उठाई हैं
ऐ अमीर-ए-शहर अब तो मेरे हाथ चूम आ कर
रोज़ तो नहीं आते चाहतों के ये मौसम
जब कोई घटा बरसे थोड़ा भीग जाया कर
सादगी ज़रूरी है थोड़ी सी मोहब्बत में
थोड़ा एहतियातन भी छुप-छुपा के देखा कर
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