हरीफ़ मुझ सा अगर हो तो कुछ ख़सारा नहीं
By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
हरीफ़ मुझ सा अगर हो तो कुछ ख़सारा नहीं
जो ख़ुद भी जीत गया और कोई हारा नहीं
लहू में डोलती फिरती है अब भँवर की तरह
वो एक लहर जिसे हम ने पार उतारा नहीं
मगर ये बात बताऊँ तो किस तरह उस को
कि ख़ामुशी में तिरी अब मिरा गुज़ारा नहीं
जुनूँ को अपने परखना था सो परख आए
अब और काम कोई दश्त में हमारा नहीं
'अजीब नश्शा-ए-आवारगी है सर पे सवार
सुकूँ भी आज हमें देर तक गवारा नहीं
जो ख़ुद भी जीत गया और कोई हारा नहीं
लहू में डोलती फिरती है अब भँवर की तरह
वो एक लहर जिसे हम ने पार उतारा नहीं
मगर ये बात बताऊँ तो किस तरह उस को
कि ख़ामुशी में तिरी अब मिरा गुज़ारा नहीं
जुनूँ को अपने परखना था सो परख आए
अब और काम कोई दश्त में हमारा नहीं
'अजीब नश्शा-ए-आवारगी है सर पे सवार
सुकूँ भी आज हमें देर तक गवारा नहीं
13566 viewsghazal • Hindi