हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ वो एक पल
By abdul-majeed-bhattiOctober 22, 2020
हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ वो एक पल
जिस में था पहली नज़र का रूप छल
दीदा-ओ-दिल के लिए हैं रहनुमा
ये झिजक नीची नज़र अबरू पे बल
प्यास लगती है तो क्यों बुझती नहीं
आप आए तो हुई उलझन ये हल
क्या बुरा था बंद ही रहती नज़र
ज़िंदगी बे-कैफ़ सी है आज-कल
नामा-ए-आमाल अभी बे-रंग है
चार दिन की चाँदनी जाए न ढल
काम तेरा है घनी छाँव में क्या
तू मुसाफ़िर है तुझे चलना है चल
फिर कहीं से इक ज़रा आवाज़ दे
सर पे आई मौत भी जाती है टल
जिस में था पहली नज़र का रूप छल
दीदा-ओ-दिल के लिए हैं रहनुमा
ये झिजक नीची नज़र अबरू पे बल
प्यास लगती है तो क्यों बुझती नहीं
आप आए तो हुई उलझन ये हल
क्या बुरा था बंद ही रहती नज़र
ज़िंदगी बे-कैफ़ सी है आज-कल
नामा-ए-आमाल अभी बे-रंग है
चार दिन की चाँदनी जाए न ढल
काम तेरा है घनी छाँव में क्या
तू मुसाफ़िर है तुझे चलना है चल
फिर कहीं से इक ज़रा आवाज़ दे
सर पे आई मौत भी जाती है टल
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