हसरत-ए-शौक़-ए-शहादत है निकल जाने दो

By piyare-lal-raunaq-dehlwiFebruary 28, 2024
हसरत-ए-शौक़-ए-शहादत है निकल जाने दो
आज ख़ंजर को गले पर मिरे चल जाने दो
मस्त हो दीदा-ए-मय-गूँ से ज़माना सारा
तुम जो पैमाने से आँख अपनी बदल जाने दो


दिल भी दे देंगे तलबगार हैं गर दिल के हसीन
पहले चुटकी से कलेजा उन्हें मल जाने दो
रोकता कौन है जाती है तो जाए शब-ए-हिज्र
काला मुँह करने दो कमबख़्त को टल जाने दो


याद-ए-मिज़्गाँ ही से हासिल है मुझे लुत्फ़-ए-ख़लिश
तीर चलते हैं कलेजे पे तो चल जाने दो
ऐसा भी क्या है अभी आए हो जाना ठेरो
और दो चार घड़ी दिल को बहल जाने दो


ताइर-ए-रूह पे आफ़त क़फ़स-ए-जिस्म में है
चार-दीवार-ए-‘अनासिर से निकल जाने दो
आफ़त आएगी मोहब्बत के गुनहगारों पर
खोल कर देते हो क्यों ज़ुल्फ़ में बल जाने दो


मैं ये कहता हूँ कि अग़्यार का जामा न पहन
दिल को ज़िद है कि मुझे भेस बदल जाने दो
पाँव रखता है रह-ए-शौक़ में ऐ हज़रत-ए-दिल
सर के बल जाता हूँ मैं आँखों के बल जाने दो


छोड़ दो कूचा-ए-जानाँ का तसव्वुर 'रौनक़'
दिल जो कमबख़्त मचलता है मचल जाने दो
37720 viewsghazalHindi