हसरत से क़मर तकता था ख़ुर्शीद-ए-मुबीं था
By bilal-sabirMarch 1, 2024
हसरत से क़मर तकता था ख़ुर्शीद-ए-मुबीं था
इक शख़्स यहाँ इतना हसीं इतना हसीं था
जो शख़्स मिरे हाथ में था सात बरस तक
अफ़सोस वो हाथों की लकीरों में नहीं था
आहा वो मिरा शो'ला-बदन उस की वो बाँहें
उफ़ मेरा मुक़द्दर कि मैं इक वक़्त कहीं था
इक ख़ुशबू ने मौसम ने हवा ने मुझे बोला
तू आता ज़रा पहले कि वो शख़्स यहीं था
इक रंग का मौसम ही रहा करता था 'साबिर'
जब आसमाँ था उस का मैं वो मेरी ज़मीं था
इक शख़्स यहाँ इतना हसीं इतना हसीं था
जो शख़्स मिरे हाथ में था सात बरस तक
अफ़सोस वो हाथों की लकीरों में नहीं था
आहा वो मिरा शो'ला-बदन उस की वो बाँहें
उफ़ मेरा मुक़द्दर कि मैं इक वक़्त कहीं था
इक ख़ुशबू ने मौसम ने हवा ने मुझे बोला
तू आता ज़रा पहले कि वो शख़्स यहीं था
इक रंग का मौसम ही रहा करता था 'साबिर'
जब आसमाँ था उस का मैं वो मेरी ज़मीं था
84884 viewsghazal • Hindi